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मैं बेटी क्यों हूँ ?

Ruchi Shukla
Ruchi Shukla
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आज फिर किसी को बेटा होने की दुआ मांगते देखा….और उभर आया एक दर्द….बहुत पुराना दर्द….
लड़की होने का दर्द…….अरे नहीं….मुझे अपने लड़की होने का दर्द नहीं……..कभी नहीं …..न हुआ…न होगा
ये दर्द तो कुछ और ही है…….दर्द …बेटी होने का …..दर्द सिर्फ बेटी होने का ….
बहुत से ऐसे मां-बाप हैं जिन्हें मालिक ने बेटियों की परवरिश के लिए चुना है….सिर्फ बेटियों की परवरिश के लिए…..
तो क्या सिर्फ बेटियों के मां-बाप होना इतना गलत है कि लोग जीवनभर अफसोस जताते हैं….
अगर मां-बाप को अफसोस ना भी हो तो भी आस-पास के लोग उन्हें अफसोस करने पर मज़बूर करते हैं….
मैने बहुत करीब से देखा है…कि कैसे परिवार और समाज के दबाव में मां-बाप एक से दो..फिर तीन और कई बार इससे भी ज्यादा बच्चों को जन्म देते हैं…. या यूं कह सकते हैं कि जुआ खेलते हैं……..बेटा पाने का जुआ….
मैंने करीब से महसूस किया है इस दर्द को….एक आम सवाल हमेशा टकराया मुझसे….कि ‘कितने भाई-बहन हो’….मेरा जवाब होता था…. ‘तीन बहनें’….मेरा जवाब अपने आपमें पूरा होता था….लेकिन उनका अगला सवाल तुरंत आता था…. ‘भाई नहीं है?’….मैं फिर कहती थी ….कि मेरे इतने सारे और इतने प्यारे-प्यारे भाई हैं….जो बहुत खुशनसीब बहनों को ही मिलते हैं……..सामने से फिर सवाल टपकता था…. ‘वो तो ठीक है लेकिन सगा भाई नहीं है?’……..आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि उस वक्त मेरे खून का रंग कैसा होता होगा….फिर भी खुद को संभालते हुए बोलती थी….कि हमें सगा-चचेरा-फुफेरा-ममेरा नहीं सिखाया गया…..हम भाई-बहनों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन किसकी औलाद है…..हमें तो बस इतना पता है हम साथ थे….साथ हैं और हमेशा साथ ही रहेंगे….मैं सच्चे मन से दुआ करती हूं कि मुझे हर जन्म में ऐसे ही भाई-बहन मिलें…..
बड़े-बड़े पढ़े-लिखे….अमीर और कथित तौर पर समझदार लोगों को ऐसे गिरे हुए सवाल करते देखा और सुना है…..हैरानी भी होती है….क्योंकि ऐसे सवाल पूछने वालों में 98 फीसदी महिलाएं होती हैं….जो खुद एक लड़की के रूप में जन्मी थीं…..
जब भी कोई दुआओं में बेटा…या पोता मांगता है और उसे बेटी या पोती मिलती है…..और फिर वो बेटी या पोती जिस तरह अपने अपनों की उपेक्षा झेलती है……बहुत दुखता है…..बार-बार मन में सवाल उठता है कि आखिर बेटियां ही क्यों अनचाही होती हैं…..
क्या वाकई बेटे से ही परिवार पूरा होता है….क्या सचमुच बेटियां मायने नहीं रखतीं…..
मां बताती है कि जब मेरा जन्म हुआ था तब किसी के मन में बेटा-बेटी जैसे ख़याल नहीं आए थे….बस बच्चा चाहिए था…लेकिन मेरे बाद मेरी जो बहन आई वो मेरे परिवार को नहीं चाहिए थी…..बेटा चाहिए था सबको….मेरे मां-बाप को व्यक्तिगत तौर पर दूसरे बच्चे की दरकार नहीं थी….लेकिन परिवार और समाज को बेटा चाहिए था…..जो नहीं हुआ…..तनाव और दबाव में एक और कोशिश की गई लेकिन वो भी नाकाम…..नाकाम इसलिए….क्योंकि इस बार भी घर में एक बेटी ने पांव रखे थे…..
इस बार तो मेरे बाबा बुरी तरह परेशान हो गए थे….मेरी मां खुश थी पर फिर भी उसे सांत्वना मिलती थी वो भी बिना मांगे…..
जैसे बेटी ना हुई हो बल्कि कोई दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो उस पर….
लेकिन मुझे मेरी बहन से गहरा प्यार था…बहुत गहरा प्यार…..कमाल तो ये कि वो बच्ची इतनी प्यारी है कि उसे पाकर कोई भी मां-बाप निहाल ही होंगे…सुंदर भी…सुशील भी….और हद से ज्यादा समझदार भी………..ऐसा लगता है जैसे कोई समाज से सवाल पूछ रहा हो कि क्या ऐसी बच्ची अनचाही होनी चाहिए……
आज बहुत कुछ बदल चुका है…..हम आगे बढ़ चुके हैं…..लेकिन दुनिया जस की तस है…..अब भी पहली ख्वाहिश में बेटा ही शुमार है…..बेटे मुझे भी पसंद हैं…..लेकिन बेटियों के अपमान की कीमत पर नहीं……
एक बात ध्यान से समझ लेने वाली है…..कि जिस घर में बेटियों का सम्मान करते हुए बेटा मांगा गया….बस उसी घर में लायक बेटों का जन्म होगा……मेरा अनुरोध है उन तमाम मांओं ….दादियों और नानियों से जिन्हें बेटे या नाती-पोते की पुरजोर ख्वाहिश हो……..कि अब बस करो…..अपने अस्तित्व को गाली मत दो…..हमारे माथे से अनचाहे होने का कलंक मिट जाने दो…..
क्योंकि बेटियां ही दिल से आपको संभालती हैं….फिर वो आपकी हों या किसी और की…..

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